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भटकती आत्मा भाग - 10

चार दिन कैसे बीत गए कुछ भी पता नहीं चला। इस बीच मैगनोलिया से मनकू नहीं मिल पाया, क्योंकि उसके दिन तीरंदाजी,लट्ठबाजी आदि का अभ्यास करते हुए और रात्रि नृत्य के ताल-लय में व्यतीत हो जाता था। इस बीच मैगनोलिया मनकू से मिलने के लिए प्रतिदिन संध्या समय निर्दिष्ट स्थान पर जाती रही, परंतु प्रियतम को न पाकर निराश लौट जाती थी। उसकी रातों की नींद और दिन का चैन खो गया था। अपने बंगले में वह चुपचाप इंग्लिश के एक उपन्यास में आंखें गड़ाई रहती, तथा मनकू पर मन ही मन झुँझलाती रहती। इतनी भी क्या व्यस्तता कि अपनी प्रियतमा को भी भूल गया वह। ठीक है चार दिनों के बाद इंतजार की इन घड़ियों का गिन गिन कर बदला लेगी वह। रात्रि में दूर बस्ती से आती हुई लोकगीत की सुरीली आवाज जब उसके कानों से टकराती तब उसके पैर अनायास थिरकने लगते, वह अपने आप ही मुस्कुराने लगती और फिर मनकू पर प्यार आने लगता।
   कलेक्टर साहब ने उससे कई बार बाहर अपने साथ घुमा लाने का प्रस्ताव रखा, परंतु कोई ना कोई बहाना करके मैगनोलिया इनकार करती रही। अकेले में मनकू के साथ बीते क्षणों का स्मरण करती हूई कभी तो हर्षातिरेक में झूमने लगती और कभी विरह व्यथा से द्रवित हो अपनी विवशता पर आंखों से आंसू बरसाने लगती। वह अपनी आया से भी स्थानीय भाषा में अक्सर बात करती और उसे कहती जो गलती हो वह सुधार दे । मनकू के प्रेम में उसने आया को भी अपना गुरु बना लिया । तेज तो वह थी ही बहुत कुछ उसने सीख भी लिया था।

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चिर प्रतीक्षित वह समय आ ही गया। सरहुल का त्योहार ! आदिवासियों का महान पर्व ! बसंत का प्रतीक ! खुशियों और उमंगों का सैलाब ! रनिया बस्ती की सीमा पर एक विस्तृत समतल मैदान था आज उसके ह्रदय पर उगी झाड़ियों को  उखाड़ कर साफ कर दिया गया था। साल कुंज से सुशोभित व पवित्र स्थान जिसे जन-भाषा में सरना स्थल कहा जाता है, आज जन समुदाय से व्याप्त था l बलि देने के लिए मुर्गे को रखा गया था। नर-नारी,आबाल-वृद्ध सब एक दूसरे की बाँहो में बाँहे डाले नगाड़े औऱ मृदँग की ताल पर थिरक रहे थे। मनकू बांसुरी बजा रहा था। रंग बिरंगे वस्त्रों में आज सब लोग मौज मस्ती में थे। लगता था कुएं के पानी में ही नशा मिला दिया गया हो उस पानी को पी कर सभी अपने जीवन के सारे दु:ख भूल गये हों l 
कुछ समय के बाद उनके पुरोहित जिन्हें पाहन कहा जाता है ने मुर्गे की बलि दी l तत्पश्चात हँड़िया (स्थानीय मदिरा) का अर्घ्य दिया गया l सभी आदिवासियों ने उसके बाद खूब छक कर हँड़िया-पान किया। कुछ देर के बाद उनको सरूर आ गया। वन प्रांत नगाड़ों और मृदंग की आवाज से गूंजने लगा। बांसुरी वादन और लोकगीत की सुरीली आवाज ने वृक्ष और लताओं को भी झूमने के लिए बाध्य कर दिया। ग्राम वासियों को आज देखने से लगता था कि उनके मस्ती के समक्ष स्वर्ग भी तुच्छ है। आज भगवान बुद्ध होते तो जान जाते की वसुधा पर जीवन में दु:ख ही दु:ख नहीं है, वरन सुख ही सुख है। वृद्ध-वृद्धा, युवक-युवती, और बच्चों के मन को उमंग अपने आप में विस्मय जनक था।
     दूसरे-दूसरे ग्रामवासी भी एक-एक कर सरना-स्थल पर आने लगे थे। भीड़ बरसाती नदियों की बाढ़ जैसी बढ़ने लगी थी। पास-पड़ोस के सभी ग्रामों के सरदार निश्चित मंच पर इकट्ठे हो गए थे। अगले कार्यक्रम के लिए विचारों का आदान-प्रदान होने लगा। अब सभी ग्रामवासी अपना-अपना स्थान ग्रहण करने लगे थे। 
  मनकू माझी अलग-थलग खड़ा था। वह चुस्त पोशाक में था। उसके ह्रदय में उमंगो का सैलाब ठहर सा गया था। अब उसके मुख पर उदासी के बादल छाने लगे थे। उसके खास मेहमान अभी तक नहीं आए थे। रह रह कर उसके दिल में टीस उठने लगी। कार्यक्रम में भाग लेने की इच्छा अब नहीं रह गई उसकी। 
  सब लोगों के बैठ जाने पर शांति व्याप्त हो गई। अब कार्यक्रम आरम्भ हो रहा था।
    सर्वप्रथम सरहुल से संबंधित एक लोकगीत प्रार्थना के रूप में प्रस्तुत होने लगा। कुछ चुने नवयुवक इसमें भाग ले रहे थे। मनकू माझी को इसमें बांसुरी बजाना था, परंतु अब भीड़ में कहीं नजर ही नहीं आ रहा था वह। रनिया गांव का सरदार मन ही मन उस पर झुंझला रहा था। आखिर जैसे तैसे कार्यक्रम आरंभ किया गया। लोकगीत समाप्त होने पर ही था कि एक अश्वारोही का पदार्पण वहां हुआ। लोगों ने देखा कलेक्टर साहब थे। मनकू भीड़ के बीच अकेले उनको देखकर और भी उदास हो गया। सरदारों ने उनका स्वागत किया तथा उपयुक्त स्थान  उनको प्रदान किया। लोकगीत की समाप्ति के बाद लोक नृत्य प्रस्तुत करने की घोषणा हुई। इसमें मात्र स्त्रियों को भाग लेना था।
   सभी स्त्रियां नृत्य स्थल पर जमा होने लगीं। कुछ देर के बाद नृत्य प्रारंभ हुआ। मृदंग और नगाड़े का स्वर गूंजने लगा। सुरीली आवाज में गाती हुई स्त्रियां लोक नृत्य प्रस्तुत कर रही करने लगीं। सभी लोग तन्मय होकर नृत्य देख रहे थे। कलेक्टर साहब के मुख पर रहस्यमयी मुस्कुराहट खेल रही थी। सरदारों ने देखा कि एक युवती अनभ्यस्त कदमों को आगे पीछे करने में कुछ असमर्थता प्रकट कर रही है। लगा जैसे यह कोई बाहरी युवती हो। नृत्य समाप्त हुआ। नृत्य की समाप्ति पर तालियों की गड़गड़ाहट दिग-दिगंत में गूंजने लगी। अचानक एक गंभीर आवाज मंच से उभर कर गूंज उठी -  
   "स्त्रियों के इस लोक नृत्य में कलेक्टर साहब की सुपुत्री मैगनोलिया को सर्वश्रेष्ठ नृत्यांगना घोषित किया जाता है"।
  " मैगनोलिया? अच्छा तो मैगनोलिया नृत्य कर रही थी। मैं तो हतोत्साहित होकर अपना प्रोग्राम देना ही नहीं चाह रहा था। मैं मैगनोलिया से निपटता हूं - "
  सोचता हुआ मनकू मांझी शीघ्र अति शीघ्र उस भीड़ में प्रवेश करने लगा,जिधर स्त्रियां नृत्य समाप्त कर लौट रही थीं। परंतु यह क्या मैगनोलिया तो कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं हो रही,फिर किधर चली गई। रंगमंच पर भी वह नहीं दिख रही है। विचार मग्न होता हुआ मनकू इधर-उधर दृष्टि दौड़ा ही रहा था कि एक कर्णप्रिय आवाज ने उसको चौंका दिया -    "हेलो डियर माइकल"।
मनकू सहसा पहचान भी ना सका, फिर ध्यान पूर्वक देखता हुआ उसके 

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1 Comments

Mohammed urooj khan

25-Oct-2023 02:33 PM

👍👍👍👍

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